Saturday, February 21, 2009

Dil ka khoon

sahara liya tha meine jiska , jo tha saath mere ,
jiske liye mein thi , aur jo tha mere liye .
aaj jab peeth huyo uski taraf, uske mulayam haath panje ban gaye ,
samjha tha zulf suljhayega jo meri kabhi ,
tod di usne zanzeerein wafa ki .
pyaar tha mujhe usse , uski her baat se ,
her ada thi aankho ki tarah uski dilkash ,
teer chala diye dil per mere jitne bhi the ,
jaise bhi the uske tarkash mein.
dil ka khoon laal hota hai ,
wafa ka rang dekha nahi kabhi meine,
per be-wafayi ka bhi laal hota hai ,
beh jaati thi nadiya kabhi uski yaad mein ,
ab yaad nahi usko meri pal bhar bhi.
Waqt kerta shayad wafa , aur sunta meri sada ,
mujhse naraaz tha mera khuda ,
ya ba-khuda meine dil hi laga kkiya kaafir se ,
per agar tu hai hi aye mere khuda is duniya mein ,
to bata de kaafir kaise jeet gaya teri is ibadat per .
mein nahi jaanti ki tu kya kerta hai mere hum nafaz,
per her aayat per meine teri hi padhi hai namaaz,
aur kiye hai sajde tere hi naam ke umar bhar ,
na ja be-hairat ban ker is toote huwe dil से
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सहारा लिया था मैंने जिसका , जो था साथ मेरे ,
जिसके लिए में थी , और जो था मेरे लिए ,
आज जब पीठ हवी उसकी तरफ़ , उसके मुलायम हाथ पंजे बन गए ,
समझा था जुल्फ सुल्जायेगा जो मेरी कभी ,
तोड़ दी उसने जंजीरें वफ़ा की ।
प्यार था मुझे उससे , उसकी हर बात से ,
हर अदा थी आँखों की तरह उसकी दिलकश ,
तीर चला दिए दिल पर मेरे जितने भी थे ,
जैसे भी थे उसके तरकश में ।
दिल का खून लाल होता है ,
वफ़ा का रंग देखा नही कभी मैंने ,
पर बे-वफाई का भी लाल ही होता है ,
बह जाती थी नदिया कभी उसकी याद में ,
अब याद नही उसको मेरी पल भर भी ।
वक्त करता शायद वफ़ा , और सुनता मेरी सदा ,
मुझसे नाराज़ था मेरा खुदा ,
या बा-खुदा मैंने दिल ही लगा लिया काफिर से ,
पर अगर तू है ही ए खुदा इस दुनिया में ,
तो बता दे काफिर कैसे जीत गया तेरी इस इबादत पर ।
में नही जानती की तू क्या करता है मेरे हम-नाफाज़ ,
पर हेर आयत पर मैंने तेरी ही पढ़ी है नमाज़ ,
और किए है सजदे तेरे ही नाम की उमर भर ,
ना जा बे-गैरत बन केर इस टूटे हुए दिल से ।

कहीं तो होगी ....

झिलमिलाते हुवे गगन टिमटिमाते हुए तारे , तेज़ चलते हुए इस सुनसान सी सड़क पर , शहर की टिमटिमाती चकाचौंध से दूर , उस आकाश के पास जाते हुए , कड़कती बिजली में मुझे एक तारा दिखा । पता है क्या था वोह , वोह थी एक याद , उस रात की जब हम सोये नही थे । चले जा रहे थे एक साथ आखिरी बार शायद , पर रुके रुके से कदम अपनी रफ्तार से चल रहे थे , और कहीं पर थामे तो मानो वक्त पर अपना व्यकितव्य छोड़ते चले गए । ऐसा गहरा था उस रात का एक एहसास , चाय पीने से उस सितारों भरी रात में जब हम सब रुके। मौत से एक कदम दूर खड़े उस जहाँ को चीख चीख कर, चिल्ला चिल्ला केर बोल रहे थे , की केर ले जो कुछ करना है ,पर हम नही रुकेंगे । हम चलेंगे , और हम चले । ख़ुद भगवान् की आँख जैसे हमारे जज्बे को देख केर नम हो गई होगी। एक तरफ़ थी मेरे प्रिंसी और दूरी तरफ़ । दूसरी तो कोई तरफ़ ही नही थी , हाँ नमिता थी । और नमिता और प्रिंसी के बीच में खड़ा था में , मुझे तो पहचान ही लिया होगा , दीपक और हिमांशु । कोई अन्तर है क्या हम दोनों में। मेरी टांग में था ग़ज़ब का दर्द , और उस सर्द रात में होश उदा देनी वाली हवाएं मदहोश केर रही थी। पर था सहारा मेरा अपना ख़ुद का ( हिमांशु और मेरे में कोई अन्तर नही है :) ) । इन राहो पर खड़े हम यह ही सोच रहे थे की कितना हसीं यह लम्हा है , एक बार उमर में मिले है सब । शायद थी भी वोह मेरे जाने से एक महीने पहेले की घटना जिसमें हम सब पिस गए , उस गेहूं की तरह जो पिछली दो सदी में पकी थी , सिर्फ़ इस दिन के लिए जब हम सब एक रंग हो जाएँ। बीमार प्रिंसी और बिंदास आशु , कहीं पर मस्ती से भरपूर सोमू थी तो कहीं विनम्र नमी । और यहाँ खड़ा था में , पूरी दुनिया पर राज करने के लिए । एक दीपक । कहाँ से लाऊं में वोह सब दोस्त वापस , कहाँ से लाऊं में वोह जुस्तजू , कहाँ से लाऊं में वोह दिन दिसम्बर का , कहाँ से लॉन वोह रात तारो भरी , और कहाँ मिलेंगी इतनी टूट ते तारे , कहीं तो मिलेंगे ही , तलाशा । बहुत तलाशा , इस सुनसान सड़क पर कड़कती बिजली में , और फ़िर मुस्कुरा दिया ... क्यूँ । क्यूँ नही । साथ ही तो चल रहे है मेरे यह सब। यादो में बसते है और आँखों में उतारते है । तुम्हारे लिए सपना , हमारे लिए हकीकत ।

Friday, February 20, 2009

फिसलती ज़िन्दगी

फिसलती ज़िन्दगी और गुज़रते वक्त के साथ याद आया ,
तेरा साया जिस में गुजार देते थे पूरा दिन ,
दुपट्टा बन जाता था तेरा साया सर का मेरे ,
और जुल्फ देती थी छाया मेरी छाया को ,
हाथ बन जाते थे प्यार के बंधन ,
आज जब तेज़ धुप में अकेले निकला ,
तो बहुत याद आया ।

याद आया

रात को सोते हुवे एक आहात सी सुनाई दी ,
कम्बल को ज़ोर से लपेट कर सोने की कोशिश की ,
पर मुह से एक नाम निकला और नींद खुली,
किसी ने मेंरे मुह पर पानी छिड़क दिया था ,
पर था नही कोई यह शैतानी की मेरी आँख ने ,
भाई आज रात को आँख खुली तो तू बहुत याद आया ।

कहीं पर दोस्त तेरा साथ था ,
सुबह उठ केर तेरा चेहरा दीखता था ,
रात को सोते समय भी साथ तुम ही थे ,
ज़िन्दगी का हेर पल तेरी दोस्ती के लिए था ,
आज जब ख़ुद को तनहा राह पर देखा ,
तो वोह भाई का हाथ बहुत याद आया ।

करता आया हूँ गलतिया उमर भर से ,
एक दोस्ती तेरे से की थी मैंने कभी ,
सबसे बड़ा काम भी वोह ही था और गलती भी ,
आज जब गिरता हुवा भी गलती नही कर सकता ,
तो भाई तेरा सहारा बड़ा याद आया ।

साथ खाना खाया एक उमर भर ,
और भूखा भी रहा तेरे लिए मेरी जान ,
व्रत तक रखे की जिए तू मेरी भी एक ज़िन्दगी ,
रात उठ उठ के खाना भी बनाया ,
आज जब खाना छोड़ देते है एक वक्त का
भाई तेरा व्रत बड़ा याद आया ।

खेल खेलता था तू तड़प कर साथ मेरे ,
और हरा के रख देता था सबको ऐसे ही ,
और में साथ खड़ा मुस्कुरा देता तेरी जीत पर ,
आज उस खेल में जब में बन गया एक मोहरा ,
दोस्त तेरा खेल बहुत याद आया ।

दौडाते थे सड़क पर बाइक पूरी तेज़ी से ,
किसी से कभी नही हारे उस शहर में कभी कहीं ,
और आपस में हार जीत सोची नही कभी ,
आज जब इस तनहा शहर की दौड़ में अकेले दौड़ा ,
भाई तेरी MP -13 bahut yaad aayi .

ज़मीन से आसमा तक और अपने घर से सामने वाले तक ,
एक पूरी दुनिया एक नज़र में नाप लेते थे ,
एक शहर से दूसरे पलक झपकते होते थे ,
कहीं दिल जीते तो कहीं हड्डिया तोडी ,
फ़िर कहीं पर पलकों पर ख्वाब सजा के आए ,
आज वीराने शहर में तेरी नजरो से दिल जीतना चाहा ,
तो भाई तू बहुत याद आया ।

पूरी पूरी रात निकल जाती थी एक प्याले में ,
कभी रात गुज़री है हमने ठंडी सड़को पर भी,
और कहीं एक किस्से पर दिन गुज़रता था ,
कहीं रोये भी है साथ और बताये है दिल के टुकड़े तुझे ,
आज जब दिल टुकड़े टुकड़े हो गया ,
तो भाई तू बहुत याद आया ।
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यह पंक्तिया सिर्फ़ उन दो लोगो के लिए है , जो इनमे छुपी एक उमर तलाश सकते है ।
क्यूंकि आज जब तन्हाई में अपनी कमाई देखता हूँ ,
तू सिर्फ़ दोस्त ही नज़र आते है ।

Wednesday, February 18, 2009

खौफ्फ़ लगता है ...

खुदा से डरते हो तो थोड़ा और डरो ,
और नही डरते तो दोस्ती की इबादत करो ,
एक उमर बाद मिले कुछ दोस्त जो थे दोस्त से बढ़कर ,
जो रहते थे घर में कम और दिल में ज़्यादा ,
जिनके साथ पी मैंने सुबह की चाय और रात की हस्सी ,
जो न थे मेरे रिश्तेदार , ना मेरे हमदम ,
पर बन गए जो मेरे दिल की धड़कन ...
आज एक उमर गुज़र सी गई है ,
और याद नही जाती उनकी जो थे करीब दिल के ,
किसी के चेहरे की रौनक याद है , किसी की प्यारी हस्सी ,
और कोई थी ही इतनी हसीं की हसीना लगती थी ,
कोई इतनी समझ्धार की सबको लेकर चले साथ ,
तो किसी में बचपना भरा हुवा ,
कहीं तेज़ हवा का झोंका था , तो कोई मस्त मौला था ,
कोई चीनी की तरह घुल गया दोस्ती में ,
और कहीं कोई पिट भी गया प्यार में ,
कुछ तो शादी केर के निकल लिए ,
तो किसी ने तलाश लिया जीवन साथी ,
कहीं पर कोई गाना किसी की याद दिला देता है ,
तो कहीं सिनेमा का साथ है ...
पर जो बात इनमे में है वोह है नही कहीं ,
वोह रात को २ बजे चाय बनाना ,
भाई में बनाता हूँ तुम बैठो ,
और छोड़ आएगा दीपक सुबह ७ बजे ,
वोह अँगरेज़ देख के सलीम फेंकू को याद करना ,
तो कहीं अपने सैफ का स्टाइल ,
वोह न फ स के लंबे सफर ,
नही भूलती है मुझे सुबह ४ बजे की गपशप ,
न भूलती है सुबह ६ बजे खाना हल्का फुल्का खाना ,
और न ही भूलती है वोह डरावनी रात का बाना ,
तो याद है दीपक जी के घर का हवन ,
कहीं कुछ नही भूला है यह लड़का ,
जाने तू या जाने ना देखकर आया था साथ तेरे ,
और आज तक तू साथ है मेरे ,
चाहे जाने तू या जाने ना ,
कहीं ऐसा न हो की में भूल जाऊँ ,
वोह लम्बी लम्बी ई-मेल के सिलसिले ,
वोह पेट्रोल पम्प के किस्से ,
वोह सी सी दी की काफ़ी ,
और टर्मिनल की चाय ,
कहीं भूल न जाऊँ में ,
वोह लम्बी बातें , वोह लंबे सफर ,
वोह उमर से ज़्यादा घेहरी यादें ,
वोह मुझ से ज़्यादा में ....
खौफ्फ़ लगता है की कहीं भूल न जाऊँ में ,
कहीं भूल न जाए तू ...
कहीं हम भूल न जाए एक दूसरे को ...
डर लगता है दोस्त मेरे ....